By नवभारत | Updated Date: Sep 8 2019 3:13PM |
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चुनाव का समय चल रहा था मेरे अधिकांश शिक्षक साथियों की चुनाव प्रशिक्षण में ड्यूटी लगी हुई थी। सभी शिक्षकों के चुनाव प्रशिक्षण में होने के कारण उस दिन शाला में मैं एक वरिष्ठ शिक्षिका और एक अन्य शिक्षिका ही थे और हमारे ऊपर कक्षा छठवीं से बारहवीं तक के लगभग 400 बच्चों के साथ शाला संचालन की जिम्मेदारी थी। हम तीनो ने अपने काम को अलग-अलग बांट लिया। यह तय हुआ कि मैं कक्षा 11वीं और 12वीं के बच्चों के साथ कुछ कार्य करूंगा उन्हें कुछ प्रेरक कहानियां या प्रेरक वीडियो के माध्यम से कुछ जीवन जीने के उपायों पर चर्चा करूंगा। हम हमारे शाला के कंप्यूटर रूम में बैठकर इस पर चर्चा कर रहे थे। तभी मेरे पास हमारे प्रिंसिपल सर का फोन आया और कुछ जानकारी ऑफिस से इकट्ठा करके भेजने के लिए उन्होंने मुझे निर्देशित किया। मैं यहां कक्षा में कंप्यूटर पर एक मूवी भाग मिल्खा भाग लगाकर और बच्चों को उसे शांति से देखते रहने का निर्देश देकर ऑफिस में जानकारी एकत्र करने चला गया।
जब मैं वहां जानकारी एकत्र कर रहा था तभी मेरे पास हमारी वरिष्ठ शिक्षिका आई और मुझसे नाराज होकर कहने लगी यह बताइए बच्चों को कंप्यूटर रूम में किसने बैठाया है मैंने कहा मैडम मैंने बच्चों को वहां बिठाया है। उन्होंने कहा बच्चों को मूवी देखने के लिए आपने कहा है मैंने जवाब दिया हां। फिर कहने लगी आपको मालूम है वह कौन सी मूवी देख रहे हैं मैंने कहा हां वह भाग मिल्खा भाग मूवी देख रहे हैं। उन्होंने मेरी बात को काटते हुए कहा आप गलत बोल रहे हैं बच्चे कोई अन्य मूवी देख रहे हैं। मैंने कहा हो सकता है उन्होंने दूसरी मूवी लगा ली हो। यह सुनते ही उनका गुस्सा और भड़क उठा मैं से बहुत ज्यादा गुस्से में कहने लगी आप इन बच्चों को नहीं जानते हो यह अब बड़े हो चुके हैं और फिल्मों के माध्यम से बहुत सारी गलत बातें सीखते हैं हम यहां इन्हें संस्कार सिखाने लाए हैं ना कि इन्हें बिगाड़ने। यदि इन बच्चों के द्वारा कोई गलत कार्य किया जाता है तो यह जिम्मेदारी हमारी होगी इस प्रकार वे मुझे भला बुरा कहने लगी। मैं शांतिपूर्वक उनकी बात सुनता रहा फिर मैं बोला मैडम यह बताइए कि यदि बच्चे इस उम्र में मनोरंजन फ़िल्म नहीं देखेंगे तो क्या अपने बुढ़ापे में देखेंगे। बात नंबर दूसरी क्या बच्चे सिर्फ फिल्म देखकर ही गलत बात सीखते है या गलत आदतें सीखते हैं।
वह किसी अन्य माध्यम से यह नहीं सीख सकते। उन्होंने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। मैं अपनी आग बात को आगे बढ़ाते हुए बोला मैडम यदि बच्चे हमारे साथ हमारे बीच रहते हुए भी वे बातें नहीं सीख पाते हैं जो उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनाती हो तो इसमें दोष उन फिल्मों का या उस माहौल का उतना ज्यादा नहीं है जितना हम शिक्षकों का है। जो हम उन्हें जिम्मेदारी नहीं सिखा पाए। हम यह नहीं सिखा पाए कि क्या सही है क्या गलत है और उन्हें किस परिस्थिति में क्या निर्णय लेना चाहिए।पाबंदियां लगा कर हम उन्हें कुछ दिन तक रोक सकते हैं। लेकिन क्या उन पर पाबंदी लगाकर जीवन भर उन्हें रोका जा सकता है। मेरे ख्याल से बेहतर तरीका होगा यदि हम उन्हें सही गलत में भेद करना सिखा सकें मेरा जवाब सुनकर वह शिक्षिका गुस्से में पैर पटकते हुईं वापस चली गई।
-संदीप त्रिपाठी
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