By नवभारत | Updated Date: Nov 14 2019 9:53PM |
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मुंबई. महाराष्ट्र की राजनीति में दांव-पेंच का खेल अपने चरम पर है. भविष्यवाणी करने वालों के सारे आंकलन फेल हो गए हैं. कौन सी पार्टी किस पार्टी के साथ मिलकर सत्ता संभालने का दावा पेश कर सकती है, इसको लेकर राजनेताओं से लेकर आम आदमी तक असमंजस में हैं. लेकिन लोगों को सबसे ज्यादा मातोश्री में हो रही राजनीतिक उलझन को लेकर अचंभा है. कभी महाराष्ट्र की राजनीति का केंद्र रहा मातोश्री हाशिये पर चला गया है. 2019 के विधानसभा चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद पार्टी के मुखिया उद्धव ठाकरे न तो अपने पुराने सहयोगी दल बीजेपी को अपनी ताकत का अहसास करा पाए और न ही एनसीपी और कांग्रेस पर कोई दबदबा कायम कर सके.
शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे मातोश्री में बैठकर महाराष्ट्र के अलावा देश की राजनीति पर भी अपनी मजबूत पकड़ रखते थे. सभी दलों के धुरंधर राजनेता उनसे मिलने मातोश्री आते थे. लेकिन इस समय महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसा भूचाल आया है कि शिवसेना पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को सियासी उलझनों को सुलझाने के लिए मुंबई के होटलों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. ठाकरे परिवार से मुख्यमंत्री बनने की चाहत में पहली बार उन्हें मातोश्री के बाहर पैर रखना पड़ रहा है. शिवसेना और बीजेपी का तीन दशक पुराना रिश्ता भी अब करीब-करीब खत्म होता नजर आ रहा है.
एक जमाने में किंग मेकर रहा ठाकरे परिवार अब राज्य की सियासत के सभी डोर अपने हाथों में रखना चाहता है. लेकिन किंगमेकर से किंग बनने के चक्कर में उद्धव एनसीपी और कांग्रेस के शातिर धुरंधरों के बीच फंस गए हैं. उनके इस कदम से बीजेपी भी उनसे दूर होती जा रही है. इतनी हुज्जत के बावजूद सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने की राह अभी भी आसान नहीं लग रही है. एक दशक तक सत्ता में सहयोगी रहे कांग्रेस और एनसीपी के पुराने पेंच भी उनके मंसूबे की राह में बड़ा रोड़ा बन रहे हैं. इससे यह साफ है कि महाराष्ट्र में सरकार इतनी आसानी से और जल्दी नहीं बन सकेगी.
सरकार बनाने की चाह में उद्धव होटल ताज लैंड्स एंड में एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से मिले. होटल ट्राइडेंट बांद्रा में वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल से भी मिले. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में कोई भी नेता मातोश्री नहीं पहुंचा. होटल रंगशारदा और रिट्रीट मालाड में वे आधी रात को पहुंचे. इन होटलों में उनकी पार्टी के विधायकों को रखा गया था ताकि उनमें से कोई भाजपा से न मिल सके.
बीजेपी और शिवसेना के बीच जब ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री वाले फॉर्मूले को लेकर खींचतान चल रही थी, उस दौरान एनसीपी ने शिवसेना के साथ सरकार बनाने की संभावना को हवा दी. शिवसेना को लगा कि नए गठबंधन में उसे पांच साल के लिए सीएम कुर्सी मिलेगी. एनसीपी ने भी ढाई-ढाई साल के सीएम की शर्त शिवसेना के सामने रखी है. यदि शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की मिलीजुली सरकार बनती है तो सीएम की कुर्सी उद्धव के हाथ में सिर्फ ढाई साल के लिए ही रहेगी.